किसानों और सरकार के बीच बातचीत का नतीजा पहले जैसा ही है. चंडीगढ़ में केंद्रीय मंत्रियों के साथ किसान नेताओं की बातचीत वैसे ही फेल रही, जैसे पिछले किसान आंदोलन में हुआ करती थी – और किसान नेताओं की तरफ से पहले की तरह ही बयान आये हैं.
किसान नेता राकेश टिकैत अभी तक दूरी बनाये हुए नजर आ रहे थे, लेकिन अब उनके भी बयान आने लगे हैं. राकेश टिकैत का कहना है कि सरकार किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं निकालेंगे तो वे वापस नहीं लौटने वाले हैं.
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से किसान 13 फरवरी को दिल्ली के लिए रवाना हुए हैं. ठीक एक दिन पहले किसान नेताओं और केंद्र सरकार के तीन मंत्रियों के बीच करीब साढ़े पांच घंटे तक बैठक चली, और बेनतीजा रही. बैठक के बाद किसान नेता सरवण सिंह पंधेर ने बताया था कि किसानों की तीन प्रमुख मांगों पर ही सहमति नहीं बन सकी, जबकि किसानों पर दर्ज केस वापल लिये जाने पर केंद्रीय मंत्रियों ने सहमति जताई थी. जिन तीन मांगों पर सहमति नहीं बन सकी, वे हैं – एमएसपी की गारंटी, किसानों की कर्जमाफी और 60 साल के ज्यादा उम्र के किसानों को पेंशन की डिमांड.
केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा का कहना था, अधिकांश विषयों पर हम सहमति तक पहुंचे, लेकिन कुछ पर हमने स्थाई समाधान के लिए कमेटी बनाने को कहा. अर्जुन मुंडा ने उम्मीद जताई है कि आगे बातचीत के जरिये समाधान निकाल लिया जाएगा.
कोई दो राय नहीं कि लोक सभा चुनाव से पहले किसान आंदोलन सरकार के लिए परेशान करने वाला है. लेकिन ये भी नहीं है कि केंद्र की मोदी सरकार पहले की तरह ही परेशान है. तब तो मोदी सरकार इतनी परेशान हो गई थी कि अपने ही लाये तीनों कृषि कानूनों पर कदम पीछे खींचने पड़े थे.
2022 में बीजेपी कहीं ज्यादा परेशान थी, क्योंकि उत्तर प्रदेश में हर हाल में उसे सत्ता में वापसी करनी थी. चुनावी रैलियों में बीजेपी नेता अमित शाह के भाषण तो आपको भी याद होंगे ही. अपनी रैलियों, खासकर पश्चिम यूपी, में अमित शाह समझाया करते थे कि लोग यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनवा दें ताकि 2024 में नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री बन सकें.
लोगों ने यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनवा दी. अब लोक सभा चुनाव होने जा रहे हैं, किसानों के बीच से एक असरदार नेता को भी अब बीजेपी ने साथ ले लिया है. कहने को तो राहुल गांधी न्याय यात्रा पर निकले हुए हैं, और किसानों को सत्ता में आने पर एमएसपी की गारंटी भी दे रहे हैं – लेकिन किसानों के कानों तक पहुंचते पहुंचते राहुल गांधी के भाषण का भी उतना ही असर लगता है जितना राकेश टिकैत के बयान का, या फिर जयंत चौधरी को लेकर सत्यपाल मलिक की समझाइश का.